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प्र ते॑ ब॒भ्रू वि॑चक्षण॒ शंसा॑मि गोषणो नपात्। माभ्यां॒ गा अनु॑ शिश्रथः ॥२२॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

pra te babhrū vicakṣaṇa śaṁsāmi goṣaṇo napāt | mābhyāṁ gā anu śiśrathaḥ ||

पद पाठ

प्र। ते॒। ब॒भ्रू इति॑। वि॒ऽच॒क्ष॒ण॒। शंसा॑मि। गो॒ऽस॒नः॒। न॒पा॒त्। मा। आ॒भ्या॒म्। गाः। अनु॑। शि॒श्र॒थः॒ ॥२२॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:32» मन्त्र:22 | अष्टक:3» अध्याय:6» वर्ग:30» मन्त्र:6 | मण्डल:4» अनुवाक:3» मन्त्र:22


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (गोषणः) गौ माँगनेवाले (विचक्षण) उत्तम ज्ञाता ! जो (बभ्रू) सम्पूर्ण विद्याओं के धारण करनेवाले अध्यापक और उपदेशक की मैं (प्र, शंसामि) प्रशंसा करता हूँ वे (ते) आपके शिक्षक होवें (आभ्याम्) इनके साथ आप (नपात्) नहीं गिरनेवाले होते हुए (गाः) पृथिव्यादिकों को (मा) मत (अनु, शिश्रथः) शिथिल करते हैं ॥२२॥
भावार्थभाषाः - हे जिज्ञासु ज्ञान को चाहनेवाले ! तू अध्यापक और उपदेशक को पाकर पुरुषार्थ से विद्या और उपदेश को शीघ्र ग्रहण कर, आलस्य मत कर ॥२२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे गोषणो विचक्षण ! यौ बभ्रू अहं प्रशंसामि तौ ते शिक्षकौ स्याताम्। आभ्यां त्वं नपात् सन् गा मानु शिश्रथः ॥२२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (प्र) (ते) तव (बभ्रू) सकलविद्याधारकावध्यापकोपदेशकौ (विचक्षण) प्राज्ञ (शंसामि) (गोषणः) यो गाः सनुते याचते तत्संबुद्धौ (नपात्) यो न पतति (मा) (आभ्याम्) सह (गाः) पृथिव्यादीन् (अनु) (शिश्रथः) श्रथ्नाति ॥२२॥
भावार्थभाषाः - हे जिज्ञासो ! त्वमध्यापकमुपदेशकं च प्राप्य पुरुषार्थेन विद्यामुपदेशञ्च सद्यो गृहाणालस्यं मा कुरु ॥२२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे जिज्ञासू व ज्ञानपिपासू, तू अध्यापक व उपदेशकाकडून पुरुषार्थाने विद्या व उपदेश ग्रहण कर, आळस करू नकोस. ॥ २२ ॥